प्राण बिना प्राणी कहां है ,
जिहँवा बिना वाणी कहां है
मर रहा है जो जगत में शौक कोई करता कहां है ।
रोने हेतु आसू कहां है ?
हसने हेतू परिहास कहां है?
असमंजस में पड़ गया है जीवन अब खुशनुमा
शाम कहां है।
मनुष्य में चरित्र कहां है ?
चरित्र बिना मनुष्य पवित्र कहां है?
जो बनाए ऐसा व्यक्तित्व ऐसा महाभट महान कहां
है।
हर एक विष की काट कहां है ?
हर एक भार की बाट कहां है ?
जिस वन में विचरते रहने पक्षी अब उनकी
चहचहाट कहां है।
हर घर अब राम कहा है ?
सीता का सम्मान कहां है ?
बस इसी वजह से बेबस हो तुम मचा पड़ा संग्राम
यहाँ है।
ऋतुओ का सौहार्द कहां है?
बसंत का बहार कहां है ?
जो आर्यव्रत की हर गली घूमा ऐसा नरेद्र महान
कहां है।
मनुष्य में दया भाव कहां है?
इनमें करुणा का नाम कहां है?
अमृत के नाम पर जो वृष दे ,
ऐसा बहुपढित समाज यहाँ है।
Composed by:- हर्ष पाण्डेय
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