नज़र



रकीबो की महफ़िल में इश्क का कोई प्याला नहीं
अब प्यार के लिए मेरा दिल उतावला नहीं

सोचते हैं कि सोचना छोड़ दे तेरे बारे में
सामने उजली धुप है पर आखों में कोई उजाला नहीं

सुखन बहुत हुई उसके तन बदन के बारे में
हर्ष चुप करो उसके हुस्न का कोई मुक़ाबला नहीं

लोग तो भगवान को न बक्शे वो तो फिर भी इंसा हैं 
ठहर जाती है नज़र सबकी ख़ुद को कितना छुपा कर वो चले

(⁠ ⁠╹⁠▽⁠╹⁠ ⁠)

 हर्ष पाण्डेय 

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