और कहानी किस्से का दौर चला गया
जब मैं घर छोड़ कहीं और चला गया
यहां दिन यूं बीत जाता है काम में आराम में
वो मज़े वाला बचपन चला गया
सपने बुनते और वो हंसने गाने वाले दिन
एक उम्र के साथ सब चला गया
घर छोड़ आए थे न मकानों के शहर में 
एक मकान बनाने में मेरा घर चला गया
कह देने से सारी ख्वाहिश मुकम्मल हो जाती थी
क्या कहे किससे अब तो वो दिन ही चला गया

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हर्ष पाण्डेय