बहुत रात तक मैं ये सोचता हूं
कि तेरे बारे में मैं क्यों सोचता हूं
मैं जानता हूं कि तू छूटा इश्क है मेरा
तेरे दोस्तों से तेरे हाल चाल क्यों पूछता हूं
सुबह से शाम,शाम से रात और ये अकेलापन हवाएं कह रही हैं तेरे बारे में मैं क्यों सोचता हूं नसीब कब बदनसीब हो जाए किसे ख़बर
खैरियत तुम्हारी नहीं मिलती इसपर मैं खूब सोचता हूं
हंसते हैं वे लोग जो इस ग़म के मारे हैं
बहुत पहुंची हुई चीज़ हो तुम अब मैं सोचता हूं अब
दिल किसी और पर आएगा
और फिर वो भी छोड़ जाएगा
फिर रोज़ का कोई बदनसीब नहीं अब मैं सोचता हूं
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हर्ष पाण्डेय
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