सुन रहें हैं क्या महोदय आप मेरे गीत को
मैं तो आवाज़ दे रहा हु मेरे मनमीत को
हे महोदय ना समझिए की मुझे है प्रेमरोग
सब की ऐसा कहा जीवन मिल जाए हृदय चोर
शोक में तृण भी नहीं हु, मुझको फिर पहचानिए
भरे कण्ठ से शब्द मेरे इनको ना कुछ जानिए
खो गया था मैं अपने ही आप में
चल गया था मेरा हृदय कैसे महापाप में
सोचिए क्या हुआ जो मैं स्वयं शंकित हो उठा हु
मैं तो था सामान्य बालक पुर्नपरिवर्ती हो उठा हु
ये नहीं केहता कभी मैं प्रेम है सर्वत्रव्यापी
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