यूं ही तनहा



आज कल कुछ ख़ास नहीं है
उबन सी है, आलस है
बहुत सी बातें हैं करने को, केहने को
अब पहले जैसा बातूनी नहीं रहा मैं
सब बदल गया है, मैं भी
ख़ास ख़ास लोग बड़े आम पैमानों पर तौल रहें हैं
कभी लगातार बात करता हूं कभी चुप हो जाता हूं
फिर गेहरा सन्नाटा छा जाता है
कौतुहल समाप्त
जो कुछ संभालना था सब वक्त की तरह बदल रहा है
अपने, पराए और मैं भी
साफ़ साफ़ कहूं तो आवाज़ आती ही नहीं
ख़ुद तक भी
शायद बड़े होना इसी को कहते हैं
अपनी गलती मान आगे बढ़ जाना
किसी से उम्मीद न रखना
सब देखना और कुछ भी नहीं
जिनसे कुछ कह भी सकते लाचारी ऐसी है की कह ही नहीं पा रहे, दोस्त जो एक नए जीवन की तरह हैं उनकी अपनी ज़िम्मेदारीयां हैं
फिर भी वो सुन लेते हैं
गलत सही कुछ बातें
और अंत में मैं
उपवन बसाने
सबको बताने की
अभी मैं हूं
चिंता मत करना
मैं सब ठीक कर दूंगा
थोड़ा -सा वक्त लगेगा
पर मैं सब ठीक कर दूंगा।

\⁠(⁠◎⁠o⁠◎⁠)⁠/
*
हर्ष पाण्डेय

0 Comments