खुद की तन्हाई में सो जाता हूं
कौन कहता है कि मैं खो जाता हूं
दिल भरता है
गिरते पड़ते दिन तो कट ही जाता है
जब रात होती है तो खो जाता हूं
तब कभी अकेले होने पर
उसपर से उसकी बात
तब आंसू आए थे
पर अब मैं सो जाता हूं
निहारना तेरी तस्वीर को
गुजरे वक्त में खो जाता हूं
उलझन सा जीवन हो चला है
इसलिए अब सो जाता हूं
सोने पर कुछ ना कहना
उसपर ज़ोर किसी का क्या
तुमसे मिलपाऊ
ख़्वाबों में
इसलिए मैं सो जाता हूं

⋋⁠✿⁠ ⁠⁰⁠ ⁠o⁠ ⁠⁰⁠ ⁠✿⁠⋌

हर्ष पाण्डेय