सुर्यपुत्र की अंतःकथा

राह को भूला हुआ था |
घर मैं वापस आ चुका हूं | खुद को मैंने खो दिया था |
अब मैं वापस पा चुका हूं |
क्रोध के वशीभूत होकर |
मात - पिता से क्षुब्ध होकर |
परिवार से व्यग्र होकर |
नाथ से अपने विमुख होकर |
ज्ञान फिर अज्ञान हो गया |
नाम का अपमान हो गया |
बल की मेरा क्षीण होकर |
सौ सौ से शुन्य होकर |
श्रेष्ठ से मैं नीच बन कर |
खुद को मैंने जला डाला |
ज्वालामुखी का स्रोत बन कर | छोड़ गया था उन कर्मों को |
जिन के कारण जन्म लेकर |
कुलवधू का अपमान करके |
कुल का अपने नाश करके |
तब भी मेरा चित्त मगन था |
ऐसा महापाप करके |
अनुज से ना पाप होता |
यदि मां के साथ होता |
और फिर मैं क्या ही करता |
कर्म से कब तक मैं कटता |
जन्म से ही था अभागा |
माता का है न प्रेम पाया |
प्रेयसी का विरह सहाया |
दुर्योधन का मित्रता मैं |
अंग देश का राजा बन कर |
उसका ऋण मैंने चुकाया |
प्राण जो मैंने गवाएं |
अपने ही भाई से लड़कर |
माता भी मेरी क्या करती |
कौमार्य में ही नाम कैसे देती |
वह भी तो मर्यादित थी |
वह भी तो राजकुमारी थी |
अब कि जो मैं जा रहा हूं |
स्वर्ग को मैं आ रहा हूं |
मधुसूदन से वचन लेकर |
फिर से यही जन्म लेकर |
Composed by :-
हर्ष पाण्डेय
6 Comments
Awesome
ReplyDeleteFantabulous * Keep it up dear......
ReplyDeleteLike it .....👍👍👍👍👍
ReplyDeletebhoot accha bhai
ReplyDeleteThanks to all
ReplyDeleteMast hai bhai
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