~-~-~-~-~-~- जीवन की धारा ~-~-~-~-~-~-





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जल जीवन है जब जन-जन का |

फिर  क्यों करते बर्बाद सभी |

यह वरदान है देवों का |

क्यों करते तिरस्कार सभी |

एक तरफ कहते हो जल को |

गंगा, यमुना ,सरस्वती |

एक तरफ करते हो इसको |

घृणित, दूषित , अपवित्र |

हम वैज्ञानिक , हम दूरदर्शी |

हम विकसित कहलाते हैं |

पर पानी की खोज में हम |

मंगल तक पर जाते हैं |

यह बात वही है जैसे कि |

हो मृगतृष्णा यह मानव कि |

हम खोज रहे उस अमृत को |

जिसे किया बर्बाद कभी |

अभी समय है सोच लो |

वरना फिर पछताओगे |

आशीर्वाद वो  अमृत वाला |

विष बना कर जाओगे |




composed by :- हर्ष पाण्डेय

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