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जल जीवन है जब जन-जन का |
फिर क्यों करते बर्बाद सभी |
यह वरदान है देवों का |
क्यों करते तिरस्कार सभी |
क्यों करते तिरस्कार सभी |
एक तरफ कहते हो जल को |
गंगा, यमुना ,सरस्वती |
एक तरफ करते हो इसको |
घृणित, दूषित , अपवित्र |
हम वैज्ञानिक , हम दूरदर्शी |
हम विकसित कहलाते हैं |
पर पानी की खोज में हम |
मंगल तक पर जाते हैं |
यह बात वही है जैसे कि |
हो मृगतृष्णा यह मानव कि |
हम खोज रहे उस अमृत को |
जिसे किया बर्बाद कभी |
अभी समय है सोच लो |
वरना फिर पछताओगे |
आशीर्वाद वो अमृत वाला |
विष बना कर जाओगे |composed by :- हर्ष पाण्डेय
7 Comments
Nice bhaiya,
ReplyDeleteNice line in kavita
ReplyDeleteSuperb Harsha
ReplyDeleteSo nice
ReplyDeleteThanks bhi and share more and more
ReplyDeleteSahi h Bhai....keep writing
ReplyDeleteGjb bro
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