तन समंदर है, मन लहरें हैं
भंवरे बनाती है बड़ी-बड़ी
बीचोबीच ,
सुना है तुफ़ान उठा है
जानें क्या क्या ले डूबेगा
अपना तो सबकुछ जाएगा
परिवार का भी कुछ खो जाएगा
अनर्थ कर जाएगा
पर अनर्थ में भी कुछ महान अर्थ होता है|
विचार उठते हैं,
प्रचार करते है
बिना पैसे, बिना लालच
जाने कौन सी विद्यापीठ से MBA किया है
बड़ी समझ है इन्हें
अब विचार किनारे पड़े चट्टानों से टकराकर चुर-
चुर नहीं हो जाते,
मिथ्या ही मुझे संतोष नहीं दिलाते,
मुझे धोखे में नहीं रखते,
मुझे सच्चाई बताते हैं
जैसे पिछले साल बताई और मैं कहीं क़ैद हो गया
विचारों में
कैदी बन गया विचारों का
सबसे मिलता पर मन नहीं मिलता,
कई कई रातें जागता
लोगों से दूर भागता
दुःख के दरिया में पड़ कर खुशी को तलाशता
अभी कुछ देर पहले lunch हुआ तब तक रात के
खाने का बुलावा आ जाता
कुछ नाम हैं जिन्हें मैं बता सकता हूं
जो इस काली रात के जूगनू थे
वो मुझे इस भंवर से निकाल देना चाहते थे पर मैं
मुझमें तो मैं था ही नहीं मैं था ,
विचारों में
अब मैं विचार तोड़ रहा हूं,
सबकुछ पीछे छोड़ रहा हूं
मैं स्तब्ध था भयहीन हूं
बड़बोला था निशब्द हूं
अशांत था अशांत हूं,
संकोची था संकोची हू
अनल था जल हूं
मैं कल था मैं कल हूं।
Composed by :- हर्ष पाण्डेय
10 Comments
Nice
ReplyDeleteThat's gjb 👍
ReplyDeleteBhut achche
ReplyDeleteKeep it up
ReplyDeleteBahut behtareen
ReplyDeleteSundar lines bhai saab
ReplyDeleteJi
DeleteVery nice bhai
ReplyDeleteThanks sir
DeleteBeutiful lines..... Truly wonderful.
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