हा इस पत्र का मैं प्रार्थी बनूंगा,
इस विकट विपदा में मै तुम्हारा सारथी बनूंगा
कड़ कड़ में मिल कर भी मै
साथ तुम्हारा दुगा
मित्र बनकर साथ लडुगा
ना हाथ छोडूंगा,
ना साथ छोड़ूंगा
शत्रुओं से लड़ प्राण अर्पण करूंगा।
सत्य पथ पर विपदा आती ही है
ये हमें सताती नहीं
प्रतिदिन हमें जगाती भी है
सूर्य सत्य का प्रतीक ही है
सूर्य को किसी प्रकाश की ज़रूरत नहीं
वो ख़ुद ही एक प्रतीक है
एक स्रोत है
याद रहे
जैसे हर रात के बाद दिन आता है
हर अंधरे के बाद उजाला आता है
और
अगर सूर्य अस्त होता है
तो सूर्य उदय भी होगा।
Composed by :- हर्ष पाण्डेय
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