[<<<<<<<पुकारते पंछी>>>>>>>>]




बड़ी चहल पहल हुआ करती थीं कभी

पर अब बड़ा वीरान सा है

मैं अब वहा कभी पहुंचा तो

मैं उसके मेहमान सा हूं और

वो मेरे मेहमान सा है

कोई कुछ कहता नहीं

पर मैं सब समझता हूं

लोग बाहर से खुश

पर अंदर से दुःखी रहते हैं

जो मेरे बड़े अजीज़ थे

वही अब अंजाने हो रहे हैं

मैं उनसे वो मुझसे बेगाने हो रहे हैं

चाहता हूं कि थम जाएं ये वक्त अभी

अब अपने कहने वाले सब पराए हो रहे हैं

अब और ना याद कर "शगुफ्ता" उन लम्हों को

अब अपने अपने रास्ते पर पंछी उड़ानें ले रहे हैं

देखना कहीं ख़बर ना फैल जाए ये

अपने ही घर से सभी पराए हो रहे हैं।


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