आधी रात





कहते हैं बर्बाद बहुत हैं

मिलने को बेताब बहुत हैं

हमको उनसे प्यार हुआ है

सुना है जिनके यार बहुत हैं

सभी सुनाते यही कहानी

एक था राजा एक थी रानी

सुनने में भी ठीक लग रहे

जानें क्या क्या कही कहानी

तुमको हर रोज़ देख देख कर

जानें क्या क्या स्वपन बुने हैं

मिथ्या जैसा लगता जीवन

जबसे तुमको देख चुके हैं

आखों में भर रखा है तुमको

आहट को पहचान दिया है

जबसे देखा तुमको हमनें

तुमको अपना मान लिया है

उगते सूरज के जैसे तुम

रात स्वेत चांदनी सी

कृष्ण पक्ष हो शुक्ल पक्ष हो

तुम हो प्राण आधारी सी

भले ही मौसम पतझड़ का हों

मन में सावन बना रखा है

तुमको अपना करने को

खुदको सबसे बचा रखा है

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               हर्ष पाण्डेय 

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