मन की व्यथा



अब वो ख़बर नहीं लेते मेरा हाल कैसा है
न बताते हैं कि हाल चाल कैसा है

कैसी चल रही है ज़िंदगी मेरे बिना उनकी
उल्फातो-ए-दौर में उनका हाल कैसा है

न बताते है कि कैसी शाम गुजरी कल की
रात को नीद आती हैं पर आंखे हैं खुली

गहरे हो जाते हैं ज़ख्म जब नज़रे मिल जाए
बंद हो जाए ये तो सपने में एहतराम उनका है

जफा हो कर भी मैं पूछता हूं हाल जो तेरा
एहल-ए-वफ़ा तू हो जा बता प्यार किसका है

तेरे इश्क का अजाब अजब सा है
कम से कम दिल को बता दे तेरा हाल कैसा है

(⁠ ⁠╹⁠▽⁠╹⁠ ⁠)

हर्ष पाण्डेय

0 Comments