पहले मैंने खुब कहा
पर किसी ने सुना नहीं अब तो कुछ केहता नहीं
तो पूछ रहे हैं "और बताओं"
हर बातें थी बहुत ज़रूरी
जो भी तुमसे मैं केहता था अब कहने को कुछ रहा नहीं तो अब कहते हैं "और बताओं"
अब कहने को कुछ बचा नहीं है
"बातें"
"बातें"
रह जाती हैं छोड़ो अब अपनी ही सुनाओ
बस मत पूछो की "और बताओं"
रह न गया है कुछ भी अंदर
अध्जल गगरी पूर्ण हो गई
ख़ाली होना नामुकिन हैं
छोड़ो ये रटना "और बताओं"
कभी वक्त रहा,दस्तूर रहा
मौक़ा जो मुझे मिल कभी
उसपर जो हम संग रहें और ये ऐहसास रहा जो तुम्हें
फिर तुम केहना की "और बताओं"
ರ╭╮ರ
_
हर्ष पाण्डेय
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