बेइंतहा



उसकी यादों में सुबह शाम होती है

मेरी दिलकशी बहुत बदनाम होती है

मेरी हर नज़्म मे अब जान होती है

जब उनमें जिक्र इश्क की सरेआम होती है

इनायत उसकी हुई नहीं मुझपर

इश्क में वो मुझे नादान केहती है

सुना है रकीब पैसे होते हैं

तो आशिक़ी भी तमाम होती है

ミ⁠●⁠﹏⁠☉⁠ミ

हर्ष पाण्डेय

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