आराधना



मैं भजन व कीर्तन भूल गया
तुम्हारा भी सुमिरन भूल गया
ध्यान लगाए भी वर्षों बीते
मैं कैसे मां को भूल गया
जो निषदिन मेरा ध्यान धरे
हर क्षण का जिसको ध्यान रहे
मैं उनके कैसे भुल गया
जो स्वयं उपस्थित हो करके प्रतिदिन मेरे साथ रहीं
मेरे मिथ्या बातों सुनकर भी वो मेरे पास रहीं
ठोकर लगने पर वात्सल्य भरा हाथ सिर पर जिनका आया
मैं उनके कैसे भुल गया
एक बार उन्हें यह भान नहीं
वो सौम्य रूप में न आई
वो काल रूप विकराल रूप देखकर ही मैं भयभीत हुआ
माता भी शंकित थी मेरे बच्चे को क्या है हुआ
जब मैं उनसे दूर हुआ
तो उनके यह भान हुआ
फिर शैल रूप वाली माता
मुझको भय विपदा से एक ही पल में मुक्त किया
जो मुझे सतकर्म सीखती हैं
जो लोरी मुझे सुनती हैं
जो मुझे सभ्य बनाती हैं
उनको कैसे मैं भूल गया
मैं चाहूं चाहें न चाहूं
वो संग संग मेरे रहती हैं
ऐसी ही माता होती हैं
मैं उनको कैसे भुल गया
मैं चाहूं बस स्नेह सदा
अपनी माता से प्रेम सदा
न हो जाए कुछ अनुचित या पाप
ऐसे ही रखना ध्यान मेरा
माता जगदम्बा हे जननी
चाहूं बस मैं साथ तेरा

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हर्ष पाण्डेय

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