चेहरा तेरा


चेहरा तेरा


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रात में जब चांद को देखा

याद आया चेहरा तेरा

बादल में छुप छुप जाए

लगेगी जुल्फों की घटा

खिलखिला कर हंस पड़े तू

लगे पूर्णिमा का चांद

और जब तू उदास हो


लगे अमावस्या पूरी रात

कभी नहीं देखा तुझको फिर भी इंगित करता हूं

अपने मन की आंखों से मैं तुझ को चिन्हित करता हूं

जिस दिन तुझको ना देखूं वह दिन ही कृष्ण समान रहे

मन के झरोखों को खोलने का बस यही मेरा अनुमान रहे

गंगा जैसी पावन हो तुम
सूर्य सी कान्तिं  तुम्हारी हो

तुलसी जैसी शीतलता हो

गौरव तुम वैभवशाली हो

तुम नाम बनो तुम मान बनो

तुम भिन्न  हो अभिमान बनो

तुम हर्ष को हर्षित करती हो

तुम उसका कीर्तिमान बनो



                                                                                                              कवि :- हर्ष पाण्डेय











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