द्विरागन (विदाई)


द्विरागन

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द्विरागन की है ये माया

प्रभु ना जाने क्या होगा

पिता मोह से  लिप्त रहेगा

माता को दुख भान होगा

सबके नजर से अश्रु  बहेंगे

समय बड़ा दुर्गम होगा

बेटी कि जब होगी विदाई

प्रभु ना जाने क्या होगा

अनल  साक्षी बन जाएगा

माता पिता महा दान करेंगे

वर पक्ष और वधू पक्ष

अब और भी अभिमान करेंगे

और आनंदित छड  ये होगा

जब होगा दो मन का मिलन

नये नये  जीवन बंधन का

नया नया  आरंभ होगा

सात वचन में बध जाएंगे

वर वधु के सात जन्म

दोनों घर में अब होगा

खुशियों का महासंगम

मैं यह सोचो क्या ये सोचे

वर-वधु का कोमल मन

एक तरफ चिंता कुछ होगी

एक तरफ मन होगा प्रसन्न,

पिनस बैठ दुल्हिन  जब

प्रियतम संग घर जाएगी

महालक्ष्मी, महासरस्वती , महागौरी घर लाएगी

चहक उठेगा महक उठेगा

घर आंगन और जन का मन

ऐसी रीति रिवाज प्रचलन का

प्रभु सदा सम्मान होगा

द्विरागन की है ये माया

प्रभु ना जाने क्या होगा




:- हर्ष पाण्डेय

11 Comments

  1. Keep it up bhai i am proud of you and may god make a great poet and writer in the world

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  2. बहुत अच्छा मेरे भाई। आपकी कविता में सुकून है।

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  3. Kya soch hai harsh apki, vishwas nhi hota itna chhota bacha
    Itni badi soch
    Maanna padega apko

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  4. Carry on brother
    Good luck 👍👍👍👍

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