बैठे जो पास हुज़ूर मेरे
तुमको हम कुछ बतलाते हैं
क्या हाल हमारा होता है
जब आप सवर कर आते हैं
मृगनयनी - सी इन आंखों में
जब जब हम तुमको देखें हैं
जन जीवन का न ध्यान रहे
ख़ुद को ऐसे खो देते हैं
ये घने गेसुओं के साए
जो सुखद छांव से आए हैं
ये लटये जिन्हें सुलझाने हैं
आलिंगन में तुमको लाने हैं
मन ही मन मैं चाह करू
प्रेमी के जैसे राह तकु
प्रेमी की प्रेम कामना का
जीवन में और कमाना क्या
बस साथ तुम्हारा हो संग में
जीवन में और बनाना क्या
मिथ्यवादी इस दुनिया में
कहने को है प्रेम भरा
पर सत्य किरन सी बनकर तुम
तुमने सारा संदेह हरा
कितना भी मैं गुड़गान करू
जितना भी मैं सम्मान करु
सब कम उससे
जो तुमने किया
ये भाव कराना प्रेम क्या है
ये सुख जीवन जो तुमने किया।
(˘・_・˘)
।
हर्ष पाण्डेय
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