दिल की बातें तुमसे कह दू
पर जानें क्यों घबराता हूं
जैसे पुष्प वाटिका हो तुम
भंवरों की तरह मंडराता हूं
आठों-याम है ध्यान तुम्हारा
मन-मस्तिष्क में तुम छाई हो
हवा का झोंका मुझको छूता
ऐसा लगता तुम आईं हो
मुझमे ये मजबूरी क्यों है
तुमसे मेरी दूरी क्यों है
भोग-विलास की आस नहीं है
मुझमें ऐसी प्यास नहीं है
तुमसे मिलना रोज है मेरा
बात-चीत भी हो जाती है
पर जैसे वो बात सुझती
गले में आकर रुक जाती है
कोई बातें प्रेम की करता
मेरी गर्दन झुक जाती है
प्रेम में हरे प्रेमी जैसी
हालत मेरी हो जाती है
अब लगत है कह भी दू
जो होगा देखा जाएगा
प्रेम हुआ उपहार मिलेगा
अथवा दिल शोक मनाएगा
जो भी होगा ठीक ही होगा
कुछ परिणाम में पा जाऊंगा
ह्रदय को अपने कुंठित करके
वापस राह पर आ जाऊंगा
प्रेम दोबारा हो ना सकेगा
नफ़रत भी ना कर पाऊंगा
खुद को अनाड़ी मान क्रीड़ा का
फिर से आगे बढ़ जाऊंगा।
Composed by-: Harsh Pandey
3 Comments
❣️❣️❣️❣️
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ReplyDeleteजैसे पुष्प वाटिका हो तुम.... वाह सर👌👌
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