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ऐ बारिश तुम तब आई

जब सब कुछ बर्बाद हो गया है

ये भूमि तो तुमको तरसी

पर तुम कहीं और बरसी

फिर और तरसी

फिर तुम कहीं और बरसी

फुहार आई तो थी मगर किसान की आंखों से

पंचांग और विज्ञान रह गए चुनावी वादों से

पर अब आ ही गई हो तो कुछ देर ठहरना

कुछ देर से मेरा मतलब एक पुरे रोज ठहरना

पर मैं यह कह भी किससे रहा हूं

मैं तो सुखा रूपी दंश सह ही रहा हूं

चलो छोड़ो शगुफ्ता अब तुम्हारी कौन ही सुनता है

पर कृषक रोज़ भूमि देख अपने सपने बुनता है

( ⊙⁠﹏⁠⊙ )

 हर्ष पाण्डेय 


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