कर्ज़



रात को रात केहने में हर्ज क्या है
तुम मेरी हो इसमें हर्ज़ क्या है

इतनी सहमी सी रहती हो कि कोई गुनाह किया है
पता चलने दो सबको की इश्क में हर्ज क्या है

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हर्ष पाण्डेय 



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